Top 10+ Bulleh Shah Poems in Hindi | बुल्ले शाह कविताएं
बुल्ले शाह पंजाबी सूफी कवि और दार्शनिक थे, जिनकी रचनाएँ आज भी लोगों के दिलों को छूती हैं। इस संग्रह में आपको बुल्ले शाह की 10 से अधिक प्रसिद्ध कविताएँ हिंदी में मिलेंगी, जो आध्यात्मिकता, प्रेम और मानवता के मूल्यों को दर्शाती हैं। बुल्ले शाह की भाषा सरल और भावपूर्ण है, जो हर पाठक के हृदय तक पहुँचती है। उनकी कविताएँ न केवल साहित्यिक महत्व रखती हैं, बल्कि जीवन के गहन सत्यों को भी उजागर करती हैं। यदि आप सूफी कविता और दर्शन में रुचि रखते हैं, तो आप हमारी कबीर के दोहे और रहीम के दोहे भी पढ़ सकते हैं। आइए, बुल्ले शाह की इन अमर रचनाओं के माध्यम से आध्यात्मिक यात्रा का आनंद लें।
Best Bulleh Shah Poetry in Hindi | बुल्ले शाह कविताएं
- आओ फकीरो मेले चलीए | बुल्ले शाह
- ऐसी मन में आयो रे | बुल्ले शाह
- अम्माँ बाबे दी भलिआई | बुल्ले शाह
- अब हम गुम हुए | बुल्ले शाह
- क्या करता है, वह क्या करता है | बुल्ले शाह
- अब क्या करता वह क्या करता? | बुल्ले शाह
- सानू आ मिल यार पियारया | बुल्ले शाह
- मैं पाया है मैं पाया है | बुल्ले शाह
- मैं पाया है मैं पाया है | बुल्ले शाह
- हीर राँझे दे हो गए मेले | बुल्ले शाह
आओ फकीरो मेले चलीए | बुल्ले शाह
आओ फकीरो मेले चलीए,
आरफ का सुण वाजा रे।
अनहद शब्द सुणो बहु रंगी,
तजीए भेख प्याज़ा रे।
अनहद वाजा सरब मिलापी,
नित्त वैरी सिरनाजा रे।
मेरे बाज्झों मेला औतर,
रूढ़ ग्या मूल व्याजा रे।
करन फकीरी रस्ता आशक,
कायम करो मन बाजा रे।
बन्दा रब्ब भ्यों इक्क मगर सुक्ख,
बुल्ला पड़ा जहान बराजा रे।
ऐसी मन में आयो रे | बुल्ले शाह
ऐसी मन में आयो रे। दुक्ख सुक्ख सभ वं´ारेओ रे।
हार शिंगार को आग लगाऊँ, तन पर ढाँड मचायो रे।
सुण के ज्ञान कीआँ ऐसी बाताँ,
नाम निशाँ तभी अनघाताँ।
कोयल वाँङ मैं कूकाँ राताँ,
तैं अजे भी तरस ना आयो रे।
गल मिरगानी सीस खप्परिआँ,
दरशन की भीख मंगण चढ़िआ।
जोगन नाम बहुलत धरेआ,
अंग भिबूत रूमायो रे।
इशक मुल्लाँ ने बाँग सुणाई,
एह गल्ल सुणनी वाजब आई।
कर कर सिजदे सिदक वल्ल धाई,
मुँह मैहराब टिकारियो रे।
प्रेम नगर वाले उल्टे चाले,
मैं मोई भर खुशिआँ नाले।
आण फसी आपे विच्च जाले,
हस्स हस्स आप कुहायो रे।
बुल्ला सहु संग प्रीत लगाई,
जी जामे दी दित्ती साई।
मुरशद शाह अनायत साईं,
जिस दिल भरमायो रे।
अम्माँ बाबे दी भलिआई | बुल्ले शाह
अम्माँ बाबे दी भलेआई, ओह हुण कम्म असाड़े आई।
अम्माँ बाबा चोर दो राहाँ दे, पुत्तर दी वडेआई।
दाणे उत्तों गुत्त बिगुत्तीघ्ज्ञर घर पई लड़ाई।
असाँ कज्जीए तदाहींजाले, जहाँ कणक आहना टरघाई।
खाए खैराँ ते फाटीए जुम्माँ, लटी दस्तक लाई।
बुल्ला तोते मार बागाँ थीं कड्ढे, उल्लू रहण उस जाई।
अम्माँ बाबे दी भलेआई, ओह हुण कम्म असाड़े आई।
अब हम गुम हुए | बुल्ले शाह
अब हम ग़ुम हुए प्रेम नगर के शहर
अपने आप को जाँच रहा हूँ
ना सर हाथ ना पैर
हम धुत्कारे पहले घर के
कौन करे निरवैर!
खोई ख़ुदी मनसब पहचाना
जब देखी है ख़ैर
दोनों जहाँ में है बुल्ला शाह
कोई नहीं है ग़ैर
अब हम ग़ुम हुए प्रेम नगर के शहर
क्या करता है, वह क्या करता है | बुल्ले शाह
क्या करता है, वह क्या करता है।
पूछो दिलबर से वह क्या करता है – विरामजब एक ही घर में रहता है,
फिर पर्दा क्या करता है? ।।१।।वेगवान अद्वैत नदी में,
कोई डूबता कोई तरता है।।२।।प्रभु, बुल्ले शाह से आन मिलो,
भेदी है इस घर का वो।।३।
अब क्या करता वह क्या करता? | बुल्ले शाह
अब क्या करता वह क्या करता?
तुम्हीं कहो, दिलबर क्या करता?
एक ही घर में रहतीं बसतीं फिर पर्दा क्या अच्छा,
मस्जिद में पढ़ता नमाज़ वो, पर मन्दिर भी जाता,
एक है वह पर घर लाख अनेक, मालिक वह हर घर का,
चारों ओर प्रभु ही सबके संग नज़र है आता,
मूसा और फरौह को रच के, फिर दो बन क्यों लड़ता?
वह सर्वव्यापी स्वयं साक्षी है, फिर नर्क किसे ले जाता?
बात नाज़ुक है, कैसे कहता, न कह सकता न सह सकता,
कैसा सुन्दर वतन जहाँ एक गढ़ता है एक जलता,
अद्वैत और सत्य-सरिता में सब कोई दिखता तरता,
वही इस ओर, वही उस ओर, मालिक और दास वही सबका,
व्याघ्र-सम प्रेम है बुल्ले शाह का, जो पीता है रक्त और मांस है खाता।
सानू आ मिल यार पियारया | बुल्ले शाह
हे प्रियतम हमसे आकर मिल।
सब लगे हैं अपनी स्वार्थ-सिद्धि में
बेटी माँ को लूट रही है
बारहवीं सदी आ गई है
आ पिया तू आकर हमसे मिल।
कष्टों और क़ब्र का दरवाज़ा खुल चुका अब
पंजाब की हालत और ख़राब
ठंडी आहों और हत्याओं से पंजाब कमज़ोर हो रहा है
हे प्रियतम आकर हमसे मिल।
हे ख़ुदा तू मेरे घर आ
इस प्रचण्ड आग को शान्त करा
हर साँस मेरी तुझे याद करे ख़ुदा
आ पिया तू आकर हमसे मिल।
मैं पाया है मैं पाया है | बुल्ले शाह
मैंने पाया है, हाँ तुम्हें पाया है,
तुमने अपना रूप बदल लिया है।
कहीं तो तुम तुर्क़ बनकर ग्रन्थ पढ़ते हो और कहीं हिन्दू बनकर भक्ति में डूबे हो
कहीं लम्बे घूँघट में स्वयं को छुपाए रहते हो।
तुम घर-घर जाकर लाड़ लड़ाते हो।
हीर राँझे दे हो गए मेले | बुल्ले शाह
हीर और राँझा का मिलन हो गया।
हीर तो उसे ढूँढ़ने के लिए भटकती रही
किन्तु प्रियतम राँझा तो उसकी बगल में ही खेल रहा था
मैं तो अपनी सब सुध-बुध खो बैठी थी।
बुल्ले शाह की ये कविताएँ न केवल साहित्यिक कृतियाँ हैं, बल्कि जीवन के गहन सत्यों का दर्पण भी हैं। उनकी रचनाओं में निहित संदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने सदियों पहले थे। ये कविताएँ हमें प्रेम, करुणा, और आत्म-ज्ञान का पाठ पढ़ाती हैं। यदि आप भारतीय आध्यात्मिक साहित्य में और गहराई से जाना चाहते हैं, तो हमारी तुलसीदास की कविताएँ और मीराबाई की कविताएँ भी पढ़ सकते हैं। इन कविताओं को अपने सोशल मीडिया पर साझा करें और अपने मित्रों और परिवार के साथ इस अमूल्य ज्ञान को बाँटें। याद रखें, बुल्ले शाह की रचनाएँ केवल पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि उन पर मनन करने और उन्हें जीवन में उतारने के लिए हैं – आइए, इनसे प्रेरणा लेकर अपने जीवन को और अधिक सार्थक और आध्यात्मिक बनाएँ।