Top 10 Faiz Ahmed Faiz Poems in Hindi|

साहित्य प्रेमियों, आज हम आपके लिए लेकर आए हैं “Top 10 Faiz Ahmed Faiz Poems in Hindi” का एक अद्भुत संग्रह। फैज़ अहमद फैज़, जिन्होंने उर्दू साहित्य में अपनी अमिट छाप छोड़ी, उनकी ये कविताएँ समाज, प्रेम और क्रांति के विषयों को गहराई से छूती हैं। इस संकलन में उनकी 10 सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का हिंदी अनुवाद शामिल है, जो उनकी काव्य प्रतिभा और विचारधारा को प्रदर्शित करता है। यदि आप उर्दू और हिंदी काव्य की समृद्ध परंपरा में और गहराई से उतरना चाहते हैं, तो आप अमृता प्रीतम की कविताएँ या राहत इंदौरी की शायरी भी पढ़ सकते हैं। आइए, फैज़ की इन क्रांतिकारी और भावपूर्ण रचनाओं के साथ एक यादगार काव्य यात्रा पर निकलें।

Best Faiz Ahmed Faiz Poems in Hindi

फैज़ अहमद फ़ैज़ एक पाकिस्तानी कवि और बुद्धिजीवी थे। उनकी कविता का पाकिस्तान के सांस्कृतिक इतिहास पर काफी प्रभाव पड़ा। उन्होंने उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं में भी लिखा, जो दक्षिण एशिया के अधिकांश लोगों द्वारा बोली जाती है।

इस महान कवि का काम दक्षिण एशिया के बाहर उतना जाना-पहचाना नहीं है जितना होना चाहिए। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हर कोई अपनी कविताओं को मुफ्त में ऑनलाइन पढ़ सके ताकि अधिक लोग उनका आनंद ले सकें!

  1. सितम की रस्में | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  2. तेरी सूरत | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  3. यूँ बहार आई | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  4. रंग है दिल का मेरे | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  5. मुझ से पहली सी | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  6. नज़्रे सौदा | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  7. बात बस से निकल चली है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  8. तुम न आये थे तो हर चीज़ वही थी के जो है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  9. तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार जब से है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  10. ये धूप किनारा शाम ढले | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

1.सितम की रस्में | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन, न थी तेरी अंजुमन से पहले
सज़ा खता-ए-नज़र से पहले, इताब ज़ुर्मे-सुखन से पहले

जो चल सको तो चलो के राहे-वफा बहुत मुख्तसर हुई है
मुक़ाम है अब कोई न मंजिल, फराज़े-दारो-रसन से पहले

नहीं रही अब जुनूं की ज़ंजीर पर वह पहली इजारदारी
गिरफ्त करते हैं करनेवाले खिरद पे दीवानपन से पहले

करे कोई तेग़ का नज़ारा, अब उनको यह भी नहीं गवारा
ब-ज़िद है क़ातिल कि जाने-बिस्मिल फिगार हो जिस्मो-तन से पहले

गुरूरे-सर्वो-समन से कह दो के फिर वही ताज़दार होंगे
जो खारो-खस वाली-ए-चमन थे, उरूजे-सर्वो-समन से पहले

इधर तक़ाज़े हैं मसहलत के, उधर तक़ाज़ा-ए-दर्द-ए-दिल है
ज़बां सम्हाले कि दिल सम्हाले, असीर ज़िक्रे-वतन से पहले

2.तेरी सूरत | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तेरी सूरत जो दिलनशीं की है
आशना शक्ल हर हसीं की है

हुस्न से दिल लगा के हस्ती की
हर घड़ी हमने आतशीं की है

सुबहे-गुल हो की शामे-मैख़ाना
मदह उस रू-ए-नाज़नीं की है

शैख़ से बे-हिरास मिलते हैं
हमने तौबा अभी नहीं की है

ज़िक्रे-दोज़ख़, बयाने-हूरो-कुसूर
बात गोया यहीं कहीं की है

अश्क़ तो कुछ भी रंग ला न सके
ख़ूं से तर आज आस्तीं की है

कैसे मानें हरम के सहल-पसन्द
रस्म जो आशिक़ों के दीं की है

फ़ैज़ औजे-ख़याल से हमने
आसमां सिन्ध की ज़मीं की है

3.यूँ बहार आई | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

यूँ बहार आई है इस बार कि जैसे क़ासिद
कूचा-ए-यार से बे-नैलो-मराम आता है

हर कोई शहर में फिरता है सलामत-दामन
रिंद मयख़ाने से शाइस्ता-ख़राम आता है

हवसे-मुतरिबो-साक़ी मे परीशां अकसर
अब्र आता है कभी माहे-तमाम आता है

शौक़वालों की हज़ीं महफिले-शब में अब भी
आमदे सुबह की सूरत तेरा नाम आता है

अब भी एलाने-सहर करता हुआ मस्त कोई
दाग़े-दिल कर के फ़रोज़ाँ सरे-शाम आता है

4.रंग है दिल का मेरे | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तुम न आये थे तो हर चीज़ वहीं थी कि जो है
आसमां हद्दे-नज़र, राहगुज़र राहगुज़र, शीशा-ए-मय शीशा-ए-मय

और अब शीशा-ए-मय, राहगुज़र, रंग-ए-फलक
रंग है दिल का मेरे खूने-जिगर होने तक
चम्पई रंग कभी, राहते-दीदार का रंग
सुर्मई रंग की है साअते-बेज़ार का रंग
ज़र्द पत्तों का, खसो-खार का रंग
सुर्ख फूलों का, दहकते हुए गुलज़ार का रंग
ज़हर का रंग, लहू रंग, शबे-तार का रंग
आसमां, राहगुज़र, शीशा-ए-मय
कोई भीग हुआ दामन, कोई दुखती हुई रग
कोई हर लहज़ा बदलता हुआ आईना है

अब जो आये हो तो ठहरो कि कोई रंग, कोई रुत, कोई शै
एक जगह पर ठहरे
फिर से इक बार हर एक चीज़ वहीं हो कि जो है
आसमां हद्दे-नज़र, राहगुज़र राहगुज़र, शीशा-ए-म

5.मुझ से पहली सी | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग

मैने समझा था कि तू है तो दरख़्शां है हयात
तेरा ग़म है तो ग़मे-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया मे रक्खा क्या है
तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ हो जाये
यूँ न था, मैने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाये

और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

अनगिनत सदियों से तरीक़ बहीमाना तिलिस्म
रेशमो-अतलसो-किमख़्वाब में बुनवाये हुए
जा-ब-जा बिकते हुए कूचा-ए-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लिथड़े हुए, ख़ून मे नहलाये हुए
जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजे

और भी दुख हैं ज़माने मे मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की रहत के सिवा

मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग

6.नज़्रे सौदा | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

फ़िक्रे-दिलदारी-ए-गुलज़ार करूं या न करूं
ज़िक्रे-मुर्गाने-गिरफ़्तार करूं या न करूं

क़िस्सा-ए-साज़िशे-अग़यार कहूं या न कहूं
शिकवा-ए-यारे-तरहदार करूं या न करूं

जाने क्या वज़ा है अब रस्मे-वफ़ा की ऐ दिल
वज़ा-ए-दैरीना पे इसरार करूं या न करूं

जाने किस रंग में तफ़सीर करें अहले-हवस
मदहे-ज़ुल्फो-लबो-रुख़सार करूं या न करूं

यूं बहार आई है इमसाल कि गुलशन में सबा
पूछती है गुज़र इस बार करूं या न करूं

गोया इस सोच में है दिल में लहू भर के गुलाब
दामनो-जेब को गुलनार करूं या न करूं

है फक़त मुर्ग़े-ग़ज़लख़्वां कि जिसे फ़िक्र नहीं
मोतदिल गर्मी-ए-गुफ़्तार करूं या न क

7.बात बस से निकल चली है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

बात बस से निकल चली है
दिल की हालत सँभल चली है

जब जुनूँ हद से बढ़ चला है
अब तबीअ’त बहल चली है

अश्क़ ख़ूँनाब हो चले हैं
ग़म की रंगत बदल चली है

या यूँ ही बुझ रही हैं शमएँ
या शबे-हिज़्र टल चली है

लाख पैग़ाम हो गये हैं
जब सबा एक पल चली है

जाओ, अब सो रहो सितारो
दर्द की रात ढल चली है

8.तुम न आये थे तो हर चीज़ वही थी के जो है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तुम न आये थे तो हर चीज़ वही थी के जो है
आसमाँ हद-ए-नज़र, राह-गुज़र राह-गुज़र, शीशा-ए-मय शीशा-ए-मय
और अब शीशा-ए-मय, राह-गुज़र, रंग-ए-फ़लक
रंग है दिल का मेरे “खून-ए-जिगर होने तक”
चम्पई रंग कभी, राहत-ए-दीदार का रंग
सुरमई रंग के है सा’अत-ए-बेज़ार का रंग
ज़र्द पत्तों का, खस-ओ-ख़ार का रंग
सुर्ख फूलों का, दहकते हुए गुलज़ार का रंग
ज़हर का रंग, लहू-रंग, शब-ए-तार का रंग

आसमाँ, राह-गुज़र, शीशा-ए-मय
कोई भीगा हुआ दामन, कोई दुखती हुई रग
कोई हर लहज़ा बदलता हुआ आइना है
अब जो आये हो तो ठहरो के कोई रंग, कोई रुत, कोई शय
एक जगह पर ठहरे

फिर से एक बार हर एक चीज़ वही हो जो है
आसमाँ हद-ए-नज़र, राह-गुज़र राह-गुज़र, शीशा-

9.तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार जब से है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार जब से है
न शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से है

किसी का दर्द हो करते हैं तेरे नाम रक़म
गिला है जो भी किसी से तेरी सबब से है

हुआ है जब से दिल-ए-नासबूर बेक़ाबू
कलाम तुझसे नज़र को बड़ी अदब से है

अगर शरर है तो भड़के, जो फूल है तो खिले
तरह तरह की तलब तेरे रन्ग-ए-लब से है

कहाँ गये शब-ए-फ़ुरक़त के जागनेवाले
सितारा-ए-सहर हम-कलाम कब से है

10.ये धूप किनारा शाम ढले | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ये धूप किनारा शाम ढले,
मिलते हैं दोनो वक़्त जहाँ,
जो रात ना दिन, जो आज ना कल,
पल भर को अमर, पल भर में धुआं

इस धूप किनारे पल दो पल
होठों कि लपक बाहों कि खनक
ये मेल हमारा झूठ ना सच क्यों रार करें,
क्यों दोष धरें किस कारण झूठी बात करें
जब तेरी समंदर आंखों में
इस शाम का सूरज डूबेगा
सुख सोयेंगे घर दर वाले
और राही अपनी राह लेगा

हमें आशा है कि फैज़ अहमद फैज़ की ये दस कविताएँ आपके मन और विचारों पर गहरा प्रभाव छोड़ गई होंगी। इन रचनाओं के माध्यम से हमने समाज के यथार्थ, प्रेम की गहराई और मानवीय संघर्ष के विभिन्न पहलुओं को देखा है। फैज़ की लेखनी ने न केवल साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि समाज को एक नई दिशा भी दी। यदि आप समाज और मानवीय भावनाओं पर केंद्रित और कविताएँ पढ़ना चाहते हैं, तो हमारी पीयूष मिश्रा की कविताएँ या निदा फाज़ली की कविताएँ भी देख सकते हैं।

फैज़ अहमद फैज़ की कविताओं ने यदि आपको प्रेरित किया है या नए विचारों से परिचित कराया है, तो हम आपसे अनुरोध करते हैं कि इन्हें अपने सोशल मीडिया पर शेयर करें। आप अगले पोस्ट में इन कविताओं को अपने दोस्तों और परिवार के साथ बाँट सकते हैं, ताकि फैज़ के विचारों और काव्य का प्रसार हो सके।

आशा करते हैं कि ये कविताएँ आपको समाज, प्रेम और जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण देंगी। फैज़ अहमद फैज़ की काव्य यात्रा में शामिल होने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद! याद रखें, कविता केवल शब्द नहीं होती, वह विचारों की क्रांति का बीज भी बो सकती है।

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