Top 12+ Hindi Poems On Animals | जानवरों पर हिन्दी कविताएँ
प्रिय काव्य और पशु प्रेमियों, आज हम आपके लिए लेकर आए हैं “Hindi Poems On Animals | जानवरों पर हिंदी कविताएँ” का एक विलक्षण संग्रह। इस संकलन में 25 से अधिक ऐसी कविताएँ शामिल हैं जो जानवरों की विशेषताओं, उनके व्यवहार, और हमारे जीवन में उनके महत्व को सजीवता से चित्रित करती हैं। चाहे वो शेर की दहाड़ हो या हाथी की बुद्धिमत्ता, गाय की ममता हो या कुत्ते की वफादारी, ये कविताएँ आपको पशु जगत की विविधता से परिचित कराएंगी। यदि आप प्रकृति के अन्य पहलुओं पर कविताएँ पढ़ना चाहते हैं, तो हमारी प्रकृति पर हिंदी कविताएँ और पक्षियों पर कविताएँ भी आपको पसंद आएंगी। आइए, इन भावपूर्ण पंक्तियों के साथ जानवरों की दुनिया में एक यात्रा करें।
Poems On Animals In Hindi
- 1.कुत्ता | धूमिल | Animals Poem in Hindi class 10
- 2.बिल्ली-चूहा | श्याम सुन्दर अग्रवाल | Poem on Animals
- 3.एक बिल्ली सैलानी | प्रकाश मनु | Best Poems on Animals
- 4.गाय | प्रभात | Poem on World Animal Day in Hindi
- 5.घोड़ा | सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
- 6.घोड़ा | श्रीनाथ सिंह
- 7.हाथी का जूता | प्रकाश मनु
- 8.शेर | चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
- 9.घूम हाथी, झूम हाथी | विद्याभूषण ‘विभू’
- 10.जंगलों से चले जंगली जानवर | जहीर कुरैशी
- 11.जानवर | विजय कुमार सप्पत्ति
- 12.कुत्ता इंसान नहीं हो सकता | दिनेश देवघरिया
1.कुत्ता | धूमिल | Animals Poem in Hindi class 10
उसकी सारी शख्सियत
नखों और दाँतों की वसीयत है
दूसरों के लिए
वह एक शानदार छलांग है
अँधेरी रातों का
जागरण है नींद के खिलाफ़
नीली गुर्राहट हैअपनी आसानी के लिए तुम उसे
कुत्ता कह सकते होउस लपलपाती हुई जीभ और हिलती हुई दुम के बीच
भूख का पालतूपन
हरकत कर रहा है
उसे तुम्हारी शराफ़त से कोई वास्ता
नहीं है उसकी नज़र
न कल पर थी
न आज पर है
सारी बहसों से अलग
वह हड्डी के एक टुकड़े और
कौर-भर
(सीझे हुए) अनाज पर हैसाल में सिर्फ़ एक बार
अपने खून से ज़हर मोहरा तलाशती हुई
मादा को बाहर निकालने के लिए
वह तुम्हारी ज़ंजीरों से
शिकायत करता है
अन्यथा, पूरा का पूर वर्ष
उसके लिए घास है
उसकी सही जगह तुम्हारे पैरों के पास हैमगर तुम्हारे जूतों में
उसकी कोई दिलचस्पी नही है
उसकी नज़र
जूतों की बनावट नहीं देखती
और न उसका दाम देखती है
वहाँ वह सिर्फ़ बित्ता-भर
मरा हुआ चाम देखती है
और तुम्हारे पैरों से बाहर आने तक
उसका इन्तज़ार करती है
(पूरी आत्मीयता से)उसके दाँतों और जीभ के बीच
लालच की तमीज़ जो है तुम्हें
ज़ायकेदार हड्डी के टुकड़े की तरह
प्यार करती हैऔर वहाँ, हद दर्जे की लचक है
लोच है
नर्मी है
मगर मत भूलो कि इन सबसे बड़ी चीज़
वह बेशर्मी है
जो अन्त में
तुम्हें भी उसी रास्ते पर लाती है
जहाँ भूख –
उस वहशी को
पालतू बनाती है।
2.बिल्ली-चूहा | श्याम सुन्दर अग्रवाल | Poem on Animals
आगे-आगे चूहा दौड़ा,
पीछे-पीछे बिल्ली।
भागे-भागे, दोनों भागे,
जा पहुँचे वो दिल्ली।लाल किले पर पहुँच चूहे ने,
शोर मचाया झटपट।
पुलिस देखकर डर गई बिल्ली,
वापस भागी सरपट।
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3.एक बिल्ली सैलानी | प्रकाश मनु | Best Poems on Animals
पंपापुर में रहती थी जी
एक बिल्ली सैलानी,
सुंदर-सुंदर, गोल-मुटल्ली
लेकिन थी वह कानी।बड़े सवेरे घर से निकली
एक दिन बिल्ली कानी,
याद उसे थे किस्से प्यारे
जो कहती थी नानी।याद उसे थीं देश-देश की
रंग-रंगीली बातें,
दिल्ली के दिन प्यारे-प्यारे
या मुंबई की रातें।मैं भी चलकर दुनिया घूमूँ-
उसने मन में ठानी,
बड़े सवेरे घर से निकली
वह बिल्ली सैलानीगई आगरा दौड़-भागकर
देखा सुंदर ताज,
देख ताज को हुआ देश पर
बिल्ली को भी नाज।फिर आई मथुरा में, खाए
ताजा-ताजा पेड़े,
आगे चल दी, लेकिन रस्ते
थे कुछ टेढ़े-मेढ़े।लाल किला देखा दिल्ली का
लाल किले के अंदर,
घूर रहा था बुर्जी ऊपर
मोटा सा एक बंदर।भागी-भागी पहुँच गई वह
तब सीधे कलकत्ते,
ईडन गार्डन में देखे फिर
तेंदुलकर के छक्के!बैठी वहाँ, याद तब आई
नानी, न्यारी नानी,
नानी जो कहती थी किस्से
सुंदर और लासानी।घर अपना है कितना अच्छा-
घर की याद सुहानी,
कहती-झटपट घर को चल दी
वह बिल्ली सैलानी।
4.गाय | प्रभात | Poem on World Animal Day in Hindi
साँझ ढलने
और इतना अन्धेरा घिरने पर भी
घर नहीं लौटी गाय
बरसा में भीगती मक्का में होगी
या किसी बबूल के नीचे
पानी के टपके झेलतीपाँवों के आसपास
सरसराते होंगे साँप-गोहरे
कैसा अधीर बना रही होगी उसे
वन में कड़कती बिजली रो तो नहीं रही होगी
दूध थामे हुए थनों में
कैसा भयावह है अकेले पड़ जाना
वर्षा-वनों में
जीवन में जब दुखों की वर्षा आती है
इतने ही भयावह ढंग से अकेला करते हुए
घेरती है जीवनदायी घटाएँ
5.घोड़ा | सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
अगर कहीं मैं घोड़ा होता, वह भी लंबा-चौड़ा होता।
तुम्हें पीठ पर बैठा करके, बहुत तेज मैं दोड़ा होता।।पलक झपकते ही ले जाता, दूर पहाड़ों की वादी में।
बातें करता हुआ हवा से, बियाबान में, आबादी में।।किसी झोंपड़े के आगे रुक, तुम्हें छाछ औ’ दूध पिलाता।
तरह-तरह के भोले-भाले इनसानों से तुम्हें मिलाता।।उनके संग जंगलों में जाकर मीठे-मीठे फल खाते।
रंग-बिरंगी चिड़ियों से अपनी अच्छी पहचान बनाते।।झाड़ी में दुबके तुमको प्यारे-प्यारे खरगोश दिखाता।
और उछलते हुए मेमनों के संग तुमको खेल खिलाता।।रात ढमाढम ढोल, झमाझम झाँझ, नाच-गाने में कटती।
हरे-भरे जंगल में तुम्हें दिखाता, कैसे मस्ती बँटती।।सुबह नदी में नहा, दिखाता तुमको कैसे सूरज उगता।
कैसे तीतर दौड़ लगाता, कैसे पिंडुक दाना चुगता।।बगुले कैसे ध्यान लगाते, मछली शांत डोलती कैसे।
और टिटहरी आसमान में, चक्कर काट बोलती कैसे।।कैसे आते हिरन झुंड के झुंड नदी में पानी पीते।
कैसे छोड़ निशान पैर के जाते हैं जंगल में चीते।।हम भी वहाँ निशान छोड़कर अपना, फिर वापस आ जाते।
शायद कभी खोजते उसको और बहुत-से बच्चे आते।।तब मैं अपने पैर पटक, हिन-हिन करता, तुम भी खुश होते।
‘कितनी नकली दुनिया यह अपनी’ तुम सोते में भी कहते।।लेकिन अपने मुँह में नहीं लगाम डालने देता तुमको।
प्यार उमड़ने पर वैसे छू लेने देता अपनी दुम को।।नहीं दुलत्ती तुम्हें झाड़ता, क्योंकि उसे खाकर तुम रोते।
लेकिन सच तो यह है बच्चो, तब तुम ही मेरी दुम होते।।
6.घोड़ा | श्रीनाथ सिंह
चाचा की यह छड़ी नहीं है,
है यह मेरा घोड़ा।
जी चाहे तो तुम भी इस पर,
चढ़ सकते हो थोड़ा।
भूसा चारा दाना पानी,
एक न पीता खाता।
छोड़ मदरसा और गाँव में,
सभी जगह है जाता।चाची को जब लखता है,
तब है अति दौड़ लगाता।
पर चाचा को देख जहाँ का,
तहां खड़ा रह जाता।
होती है घुड़दौड़ जहाँ पर,
आज वहीँ है जाना।
इस घोड़े की करामात,
है दुनिया को दिखलाना।
हटो हटो,मत अड़ो राह में,
कहना मानो लल्ला।
नहीं लात लग जाएगी,
तो होगा नाहक हल्ला।
7.हाथी का जूता | प्रकाश मनु
एक बार हाथी दादा ने
खूब मचाया हल्ला,
चलो तुम्हें मेला दिखला दूँ-
खिलवा दूँ रसगुल्ला।पहले मेरे लिए कहीं से
लाओ नया लबादा,
अधिक नहीं, बस एक तंबू ही
मुझे सजेगा ज्यादा!तंबू एक ओढ़कर दादा
मन ही मन मुसकाए,
फिर जूते वाली दुकान पर
झटपट दौड़े आए।दुकानदार ने घबरा करके
पैरों को जब नापा,
जूता नहीं मिलेगा श्रीमन्-
कह करके वह काँपा।खोज लिया हर जगह, नहीं जब
मिले कहीं पर जूते,
दादा बोले-छोड़ो मेला
नहीं हमारे बूते!
8.शेर | चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
झुमलोॅ-झुमलोॅ की रं आवै
जंगल के राजा कहलावै।गर्दन पर लटकै छै बाल
भूरा रंग के सौंसे खाल।कमरोॅ सें धौने छै भागी
जीभ छेकै कि लागै कटारी।झुण्ड बनाय केॅ रहलोॅ शेर
कोसो चलै छै रातिये बेर।शेर दहाड़ै, दै नै हाँक
आगिन रं चमकै छै आँख।
9.घूम हाथी, झूम हाथी | विद्याभूषण ‘विभू’
हाथी झूम-झूम-झूम,
हाथी घूम-घूम-घूम!
राजा झूमें रानी झूमें, झूमें राजकुमार,
घोड़े झूमें फौजें झूमें, झूमें सब दरबार!
झूम झूम घूम हाथी, घूम झूम-झूम हाथी!
हाथी झूम-झूम-झूम,
हाथी घूम-घूम-घूम!
धरती घूमें, बादल घूमें सूरज चाँद सितारे!
चुनिया घूमें, मुनिया घूमें, घूमें राज दुलारे!
झूम-झूम घूम हाथी, घूम झूम-झूम हाथी!
हाथी झूम-झूम-झूम!
हाथी घूम-घूम-घूम!!
राज महल में बाँदी झूमें, पनघट पर पनिहारी,
पीलवान का अंकुश घूमें, सोने की अम्बारी!
झूम झूम, घूम हाथी, घूम झूम-झूम हाथी!
हाथी झूम-झूम-झूम!
हाथी घूम-घूम-घूम!
10.जंगलों से चले जंगली जानवर | जहीर कुरैशी
जंगलों से चले जंगली जानवर
शहर में आ बसे जंगली जानवरआदमी के मुखौटे लगाए हुए
हर कदम पर मिले जंगली जानवरआप भी तीसरी आँख से देखकर
खुद ही पहचानिए जंगली जानवरएक औरत अकेली मिली जिस जगह
मर्द होने लगे जंगली जानवरआप पर भी झपटने ही वाला है वो
देखिए…देखिए..जंगली जानवर!बन्द कमरे के एकान्त में प्रेमिका
आपको क्या कहे-जंगली जानवर!आजकल जंगलों में भी मिलते नहीं
आदमी से बड़े जंगली जानवर
11.जानवर | विजय कुमार सप्पत्ति
अक्सर शहर के जंगलों में ;
मुझे जानवर नज़र आतें है !
इंसान की शक्ल में ,
घूमते हुए ;
शिकार को ढूंढते हुए ;
और झपटते हुए..
फिर नोचते हुए..
और खाते हुए !और फिर
एक और शिकार के तलाश में ,
भटकते हुए..!और क्या कहूँ ,
जो जंगल के जानवर है ;
वो परेशान है !
हैरान है !!
इंसान की भूख को देखकर !!!मुझसे कह रहे थे..
तुम इंसानों से तो हम जानवर अच्छे !!!उन जानवरों के सामने ;
मैं निशब्द था ,
क्योंकि ;
मैं भी एक इंसान था !!!
12.कुत्ता इंसान नहीं हो सकता | दिनेश देवघरिया
मेरा दोस्त
मेरे घर आया।
मैंने उसे
अपना नया कुत्ता दिखाया।
दोनों का आपस में
परिचय करवाया।
कुत्ते ने भी
स्वागत में दुम हिलाया।
मैंने फ़रमाया
और अपने दोस्त को बताया-
“ये कुत्ता नहीं है
मेरा भाई है, मेरा हमसाया है।”
दोस्त ने कहा-
“तुमने क्या भाग्य पाया है!
बिल्कुल इंसानों-सा कुत्ता पाया है।”
कुत्ता झल्लाया
और भौंककर चिल्लाया
“मुझे कुत्ता ही रहने दो
इंसान कहकर मुझे गाली मत दो,
कुत्ता मालिक का गुलाम होता है
जिसका खाता है
उसका गुण गाता है
जिसका एक रोटी खाता है
उसके आगे
ज़िंदगी भर दुम हिलाता है
तुम्हारी तरह
दूध पिलाने वाली माँ को
वृद्धाश्रम नहीं छोड़कर आता है।
कुत्ता कभी मतलबी
या नमकहराम नहीं हो सकता
इसलिए कुत्ता
कभी इंसान नहीं हो सकता।”
हमें आशा है कि जानवरों पर लिखी ये कविताएँ आपके मन में पशु जगत के प्रति नई समझ और संवेदना जगा गई होंगी। इन 25+ कविताओं के माध्यम से हमने जानवरों की विविधता और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को देखा – कहीं वे प्रकृति के संतुलन के प्रतीक थे तो कहीं मानवीय गुणों के प्रतिबिंब, कहीं वे पर्यावरण के संरक्षक थे तो कहीं हमारे जीवन के अभिन्न अंग। यदि आप और अधिक प्राणी-केंद्रित कविताएँ पढ़ना चाहते हैं, तो हमारी मोर पर कविता भी देख सकते हैं।
ये कविताएँ हमें याद दिलाती हैं कि जानवर हमारे पारिस्थितिक तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यदि इन कविताओं ने आपको प्रभावित किया है, तो हम आपसे अनुरोध करते हैं कि इन्हें अपने सोशल मीडिया पर शेयर करें। आप अगले पोस्ट में इन कविताओं को अपने दोस्तों और परिवार के साथ बाँट सकते हैं, ताकि पशु संरक्षण का यह संदेश और फैल सके।
आशा करते हैं कि ये कविताएँ आपको जानवरों के प्रति और अधिक दयालु और संवेदनशील बनाएंगी। जानवरों और काव्य के इस अनूठे मिलन में शामिल होने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद! याद रखें, जैसे जानवर प्रकृति के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, वैसे ही हमें भी उनके संरक्षण और कल्याण के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।
only 1-2 poem were great although rest were of very low level so s